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2 जनवरी 2017

+लोककवि रामचरन गुप्त का केवट-राम संदर्भित रसिया




जादू है प्रभु इन चरनन में
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श्री राम चन्द्र सीता सहित खड़े शेष अवतार
केवट से कहने लगे सरयू पार उतार।।

जल में नाव न डारूं
नैया बीच न यूं बैठारूं
भगवन् पहले चरण पखारूं
करूं तब पार प्रभू।

आज्ञा होय तुम्हारी
तौ मैं तुरत करूं तैयारी
मन की मैंटू शंका सारी
चरण पखार प्रभू।

शंका भारी मन में
जादू है प्रभु इन चरनन में
रज छू उडि़ अहिल्या छन में
पिछली बार प्रभू।।

ये ही काठ कठैया
मेरे घर की पार लगैया
रज छू अगर उड़ गई नैया
लूटै घरबार प्रभू।।

केवट पुनः विचारौ
मोते पाप है गयौ भारौ
जा रज ने कितनैन कूं तारौ
तारनहार प्रभू।।

तुरतहिं चरण पखारे
भगवन नैया में बैठारे
केवट पहुंची दूज किनारे
दिये उतार प्रभू।।

देन लगे उतराई
केवट के मन बात न भायी
केवट बोल्यौ जिय उतराई
रही उधार प्रभू।

आगे वचन उचारे
तुम हो सबके तारनहारे
जब मैं आऊँ पास तुम्हारे

देना तार प्रभु।।
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+लोककवि रामचरन गुप्त 

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