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17 मई 2016

अंजाम क्या होगा (ग़ज़ल)

                                                                                                        इस बेनाम चाहत का न जाने अंजाम क्या होगा 
बैचैन दिल को जो सुकून देगा उसका नाम क्या होगा 
निगाहें  ढूंढती  हैं  हरपल  उस  हमसफ़र  को 
कहीं मिल वो जाये तो उसका निशान क्या होगा 
नहीं हर किसी के सामने दिल की किताब है खुलती 
किसी बेवफा के सामने हाल ऐ दिल बयां क्या होगा 
जो दिल उनकी याद में जल कर राख हो चुका है 
भला वो इस बेदर्द ज़माने से परेशान क्या होगा 
एक लम्बी सी जिंदगी जिसने तनहा गुजार दी हो 
उसके सब्र का भला और इम्तहान  क्या  होगा 
क़यामत से ही बस इक उम्मीद बाकी हो जिसे 
फिर उसके लिए जहर से उम्दा जाम क्या होगा 
उनके इंतज़ार ने अब तक इस दिल को ज़िंदा रखा 
उनसे मिलने से अच्छा भला और पैगाम क्या होगा 

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